घोर तिमिर को चीर चुका है ये नन्हा प्रकाश,
अब सूरज की बारी है और दूर नहीं आकाश,
दीपों की नन्हीं बाती ने अन्धकार हर डाला,
जब तक थी एक बूँद शेष दीपक ने किया उजाला,
धनतेरस के बाद दिवाली के आगे गौवर्धन,
भाई दूज का पर्व है ऐसा जैसे रक्षाबंधन,
दीवाली में छूटे पटाखे, चरखी और फुलझड़ियां,
कंदीलों के साथ चमकती घर के आगे लड़ियाँ,
राम विजय कर रावण पर जब लौटे होंगे घर को,
इसी तरह से सजा दिया होगा सबने तब दर को।।"
~~(कुमार प्रशान्त)
अब सूरज की बारी है और दूर नहीं आकाश,
दीपों की नन्हीं बाती ने अन्धकार हर डाला,
जब तक थी एक बूँद शेष दीपक ने किया उजाला,
धनतेरस के बाद दिवाली के आगे गौवर्धन,
भाई दूज का पर्व है ऐसा जैसे रक्षाबंधन,
दीवाली में छूटे पटाखे, चरखी और फुलझड़ियां,
कंदीलों के साथ चमकती घर के आगे लड़ियाँ,
राम विजय कर रावण पर जब लौटे होंगे घर को,
इसी तरह से सजा दिया होगा सबने तब दर को।।"
~~(कुमार प्रशान्त)
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