यादें तेरी महफ़ूज सभी मेरे पास हैं।
देती कभी चुभन, वो कभी देती आस हैं।
सदमेे मुझे मिले मैं पत्थर की हो गई,
सांसें है चल रही वो कहते ये लाश हैं।
सोचा था मैने वो भी सुधर जायेंगे यूं ही,
निकले गलत तो आज भी मेरे कयास हैं।
मुझसे है कोई काम उन्हें फिर से आ पड़ा,
ज्यादा ही कुछ, जुबान में लाये मिठास हैं।
अपने चमन में बैठ यही देखती रही,
माली यहां दु:खी है जो पौधे उदास हैं।
ऐ चांद ईद के निकलना अभी नहीं,
तैयार मैं नहीं हूँ , पुराने लिबास हैं।
लता सुरेश सिंह
बड़ौदा, गुजरात
E.mail- lataspvv30@gmail.com
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