बदन में आग जलती है वो शोला बन मचलती है ghazalsandhyapariwar 11:18 am एहसास के मुक्तक Edit बदन में आग जलती है वो शोला बन मचलती है , है मुझसे दूर जाने क्यों मुझे ये बात खलती है , मुझे पत्थर बताकर वो बहुत ही दूर जा बैठी, नदी की धार तो जग में पहाड़ो से निकलती है । हरेन्द्र सिंह कुशवाह #एहसास Share on Facebook Share on Twitter Share on Google Plus About ghazalsandhyapariwar This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel. RELATED POSTS
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