अब कहाँ वो ज़माना बेदाम के गुलाम¹ मिले
बिना वजह कही से किसी को सलाम मिले
इश्क मुहब्बत वादे वफा बस कहने की बात
आती हैं सदा वाँ से जब यहाँ से पैगाम मिले
राह कुर्बानियों की हर कही यहाँ अपने लिए
उड़ गए मुकद्दर में जहाँ भी कोई जाम मिले
हद-ए-बर्दाश्त भी अब तो देने लगी हैं जवाब
कहीं आराम फरमाने बस दर-ओ-बाम² मिले
हर कही अब तो ज़बान बेलायत³ की ही चले
कहाँ कहीं गालिब, मीर-खुसरो-खय्याम मिले |
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