सोने चाँदी की महफिल थी ,मैं मुफलिस बेचारा था
भटक रहा था प्रेम गली में ,दिल ऐसा आवारा था
प्रीति का दीप बुझाकर उसने ,रौशन किया उजालों को
हुई चाँदनी उस आँगन में ,मेरा घर अंधियारा था
नीरज निर्भय
भटक रहा था प्रेम गली में ,दिल ऐसा आवारा था
प्रीति का दीप बुझाकर उसने ,रौशन किया उजालों को
हुई चाँदनी उस आँगन में ,मेरा घर अंधियारा था
नीरज निर्भय
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