अपनी ये इल्तजा रही परवरदिगार से



अपनी   ये   इल्तजा   रही   परवरदिगार   से
महफूज़   सब   सदा   रहें  शैतां   के  वार  से।

नफरत के बीज मुल्क में अब जो भी बोएगा
काटेंगे  उसका  जज़्बा  मुहब्बत की धार से।

हमने  सदा  उगाये हैं अम्न-ओ-अमाँ के फूल
नाता  हमारा    जोड़ो  न  ज़हरीले   ख़ार  से।

बच्चे   ठिठुर   रहे   थे    मेरे   सर्द   रात    में
ग़ुरबत   उतार  लाई   थी  चादर   मज़ार   से।

तू  मांगने  का  पहले  सलीक़ा  तो  सीख  ले
सब कुछ अता फिर होगा तुझे उस दयार से।

वो शख्स जिसने बरसों था प्यासा रखा मुझे
अब  कयूं  बुला  रहा है वो दरिया के पार से।

कितनी  अज़ीम  है  उसे ख़ाके वतन 'अमीन'
ये   पूछ्येगा  आप   किसी  जां  निसार   से।
       

     शरीफ अमीन
शाहजहाँपुर उत्तर प्रदेश

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