दिल्ली का हुड़दंग देखने मेरी आँखे आयी हैं

दिल्ली का हुड़दंग देखने मेरी आँखे आयी हैं ।
थोड़ी थोड़ी विषमय है थोड़ी सी कुम्हलाई हैं।।

कैसे होती लाशों पर राजनीति को देखा है,
मानवता को नोच फाडकर खादी ने ही फेखा है.
सीमा पर जब डटे हुए थे अपने वीर सिपाही,
इन पगलों उस समय ना उनकी याद सतायी.
आज खड़े सडकों पर देश भक्ति बतयाते हैं,
ऐसे देख भ्रमर को कलियाँ भी मुरझायीं हैं।
 दिल्ली का हुड़ दंग.. . . . . . . . .
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About ghazalsandhyapariwar

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